आज पंख पहन कर यह पत्तियां फिर उडेंगी
शायद भूल ही गयी थी की
आसमान इतना भी दूर नहीं
की छु न पाऊं
आज पानी में बहती मछलियों ने भी शोर मचाया है
बहुत हुआ बहती लहर के बहाव संग बहना
आज अपना रुख वो खुद चुनेंगी
अब लहर करेगी पीछा उनका
आज सुबह भी शाम सी महकना चाहती है
सूरज के धीमें से छिपने को देखना चाहती है
चाँद से दोस्ती करेंगी
उस सन्नाटे के शोर को महसूस करेंगी
और मैं ..
इस बदलाव को सिर्फ दूर से ही नहीं देखूंगी
आज इनको महसूस करके देखूंगी
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