Sunday, July 10, 2011

आज की शाम तुम्हारे नाम

एक अजीब सी चुभन हुई थी

जब सुना की कोई और आगया है तुम्हारे पास

उसे देखने की तमन्ना भी थी

और कभी भूल के भी न टकराने की इच्छा भी

शायद समझ नहीं प् रही थी की किस और चलूँ ??

तुमसे पूछती हूँ तो एहंकार को एक झटका सा लगता है

नहीं पूछती तो खुद ही में उलझती रहूंगी

आखिर में फोने मिला ही लिया तुम्हे

धधकन भ्हद गयी, अन्दर कुछ डूब सा रहा था , शायद अहेम .. शायद कुछ और

तुमने उठाया नहीं फोने

तब तो सोचा , चलो अच्छा ही है,

पर अब लगता है शायद तुम उस वक़्त उठा लेते फ़ोन तो बताती तुम्हे इतना कुच्छ

अब वो दर वापिस आगया है..

शायद किसी और दिन, किसी और जगह सामना करुँगी इस डर का

There are things

then there are people

there's a chord

then there are the musicians

there's chance

then there are the lucky heads

there's a moment

then there are feelings

engulfing each of what exists, we have a bigger set

it might not take away the identity, but it does eat away sum part of that wholistic self.

so the obvious next question that arise : what if the subjectivity of the matter change?