एक अजीब सी चुभन हुई थी
जब सुना की कोई और आगया है तुम्हारे पास
उसे देखने की तमन्ना भी थी
और कभी भूल के भी न टकराने की इच्छा भी
शायद समझ नहीं प् रही थी की किस और चलूँ ??
तुमसे पूछती हूँ तो एहंकार को एक झटका सा लगता है
नहीं पूछती तो खुद ही में उलझती रहूंगी
आखिर में फोने मिला ही लिया तुम्हे
धधकन भ्हद गयी, अन्दर कुछ डूब सा रहा था , शायद अहेम .. शायद कुछ और
तुमने उठाया नहीं फोने
तब तो सोचा , चलो अच्छा ही है,
पर अब लगता है शायद तुम उस वक़्त उठा लेते फ़ोन तो बताती तुम्हे इतना कुच्छ
अब वो दर वापिस आगया है..
शायद किसी और दिन, किसी और जगह सामना करुँगी इस डर का